Swami Ramtirth
इस संसार में सर्वत्र सामयिक गति है। नित्य तुम जागते हो और सोते हो, नित्य सोते हो और जागते हो। जिस प्रकार सोना और जागना ठीक क्रमपूर्वक एक दूसरे के बाद होता है, उसी प्रकार वेदांत के अनुसार जीवन और मरण, मरण और जीवन भी ठीक एक बंधे क्रम से एक दूसरे का अनुगमन करते हैं। इस संपूर्ण विश्व में किसी स्थान पर एकाएक ठहराव कहीं भी नहीं देखा जाता। कालचक्र क्या कभी रूकता है? कभी नहीं। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे ही परिवर्तन को क्रमवध दर्शाया गया है।